अरे हाँ, सुनो सुनो, आज मैं तुमको पहेली-वहेली के बारे में बताऊँगी। ये जो पहेली होती है न, ये दिमाग की कसरत कराती है। दिमाग खुल जाता है एकदम। जैसे पहले के जमाने में न, गाँव में बुढ़िया लोग पहेली बुझाती थीं। और बच्चे लोग दिमाग लगा-लगा के उसका जवाब ढूँढते थे। बड़ा मज़ा आता था।
आजकल तो सब मोबाइल में घुसे रहते हैं। कोई पहेली-वहेली नहीं पूछता। लेकिन ये ठीक नहीं है। पहेली बुझाने से याददाश्त तेज़ होती है। और हाँ, टाइम पास भी अच्छा होता है। खाली बैठे-बैठे क्या करोगे? इससे अच्छा तो पहेली ही बुझा लो।
अब सुनो, ये पहेली भी कई तरह की होती है। एक तो वो होती है जो कविता में होती है। जैसे कि “एक पेड़ पर चढ़ी कविता”। अब बताओ इसका क्या मतलब है? देखो, दिमाग लगाओ थोड़ा। और एक होती है जो गणित की होती है। उसमें जोड़-घटाना, गुणा-भाग करना पड़ता है। वो थोड़ी मुश्किल होती है, लेकिन दिमाग के लिए अच्छी होती है।

- पहेली बुझाने से दिमाग तेज़ होता है।
- पहेली से टाइम पास अच्छा होता है।
- पहेली कई तरह की होती है।
मैंने तो बचपन में बहुत पहेलियाँ बुझाई हैं। हमारी अम्मा बहुत पहेलियाँ पूछती थी। और हम सब भाई-बहन मिलकर उसका जवाब ढूँढते थे। कभी-कभी तो घंटों लग जाते थे जवाब ढूँढने में। लेकिन जब जवाब मिल जाता था न, तो बड़ी खुशी होती थी। ऐसा लगता था जैसे कोई जंग जीत ली हो।
आजकल के बच्चे तो सब भूल गए हैं। उनको तो बस मोबाइल चलाना आता है। लेकिन मैं कहती हूँ कि बच्चों को पहेलियाँ ज़रूर बुझानी चाहिए। इससे उनका दिमाग तेज़ होगा। और हाँ, उनको मज़ा भी आएगा। पहेली बुझाना तो एक खेल जैसा होता है। और खेल तो सबको पसंद होता है।
अच्छा, अब मैं तुमको एक पहेली सुनाती हूँ। सुनो ध्यान से, “वह क्या है जो सुबह चार पैर पर चलता है, दोपहर को दो पैर पर चलता है और शाम को तीन पैर पर चलता है?” अब बताओ इसका जवाब क्या है? देखो, दिमाग लगाओ थोड़ा। अगर जवाब नहीं पता तो मैं बता दूँगी। लेकिन पहले खुद से कोशिश करो। दिमाग पर ज़ोर डालो थोड़ा।
ये जो पहेलियाँ होती हैं न, ये हमारी जिंदगी से जुड़ी होती हैं। इनमें हमारी संस्कृति, हमारी परंपराएँ, सब कुछ छिपा होता है। इसलिए पहेलियाँ बुझाना बहुत ज़रूरी है। इससे हम अपनी संस्कृति को जान पाते हैं। अपनी परंपराओं को समझ पाते हैं। और हाँ, अपने दिमाग को भी तेज़ कर पाते हैं।
तो चलो, अब मैं तुमको एक और पहेली सुनाती हूँ। ये थोड़ी मुश्किल है, लेकिन तुम ज़रूर जवाब दे दोगे। मुझे पता है तुम बहुत होशियार हो। “वह क्या है जो जितना ज़्यादा बढ़ता है, उतना ही कम दिखता है?” अब बताओ इसका जवाब क्या है? देखो, दिमाग लगाओ थोड़ा। अगर जवाब नहीं पता तो मैं बता दूँगी। लेकिन पहले खुद से कोशिश करो। हार मत मानो।
ये जो पहेलियाँ हैं न, ये हमारे मनोरंजन का भी साधन होती हैं। पहले के जमाने में जब टीवी नहीं था, मोबाइल नहीं था, तो लोग पहेलियाँ बुझाकर ही अपना मनोरंजन करते थे। और हाँ, पहेलियाँ ज्ञान बढ़ाने का भी साधन होती हैं। पहेलियों के माध्यम से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

तो अब तुम समझ गए होगे कि पहेलियाँ कितनी ज़रूरी हैं। इसलिए पहेलियाँ ज़रूर बुझाया करो। और हाँ, अपने बच्चों को भी पहेलियाँ बुझाना सिखाओ। इससे उनका दिमाग तेज़ होगा। और हाँ, उनको मज़ा भी आएगा। पहेली बुझाना तो एक अच्छी आदत है। और अच्छी आदतें तो सबको अपनानी चाहिए। पहेलियों का आनंद लें और अपने दिमाग को कसरत दें। अब मैं चलती हूँ। फिर कभी मिलूंगी। तब तक तुम पहेलियाँ बुझाते रहना।