अरे, तुम सब लोग यहाँ का हालचाल पूछते हो, आज मैं तुमसे कुछ कहने आई हूँ। मेरे पोते ने मुझसे पूछा, क्या बेसबॉल के जूते फुटबॉल खेलने में पहन सकते हैं? अरे, ये बच्चा, सारा दिन बस खेल के बारे में सोचता रहता है।
मैंने कहा, बेटा, ये कैसे हो सकता है? बेसबॉल के जूते और फुटबॉल के जूते, ये तो अलग-अलग चीज़ें हैं। वो मुझे समझाने लगा, अरे दादी, थोड़ा बहुत तो चल ही जाएगा। मैंने कहा, थोड़ा बहुत नहीं चलता। ये तो ऐसे ही है जैसे बैलगाड़ी में हवाई जहाज का इंजन लगाने की बात कर रहे हो। दोनों का अपना-अपना काम है।
- फुटबॉल के जूते, वो देखो, कितने मोटे और भारी होते हैं।
- और बेसबॉल के जूते, वो थोड़े हलके होते हैं।
- फुटबॉल में तो भागना-दौड़ना, धक्का-मुक्की, सब होता है।
- बेसबॉल में तो बस, खड़े रहो, बल्ला घुमाओ, फिर भागो।
मैंने उसे समझाया, देख, फुटबॉल के जूतों में नीचे की तरफ मोटे-मोटे कील होते हैं, ताकि मैदान में फिसले नहीं, पकड़ बनी रहे। और बेसबॉल के जूतों में उतने मोटे कील नहीं होते। अब फुटबॉल के मैदान में बेसबॉल के जूते पहन कर जाओगे, तो फिसल कर गिरोगे, चोट लगेगी। फिर क्या फायदा?

और हाँ, फुटबॉल के जूतों में, आगे एक और कील होती है, जो बेसबॉल के जूतों में नहीं होती। वो किसलिए होती है? अरे, वो होती है ताकि जब तुम गेंद को मारो, तो ज़ोर से मार सको। अब बेसबॉल के जूतों में वो होगी नहीं, तो गेंद को ज़ोर से कैसे मारोगे?
मेरे पोते ने कहा, “दादी, पर फुटबॉल के जूते थोड़े महंगे आते हैं।” मैंने कहा, “बेटा, हर चीज़ का अपना दाम होता है। अब तुम अच्छी चीज़ लोगे, तो पैसा तो लगेगा ही। और वैसे भी, खेल में चोट लगने से तो अच्छा है कि थोड़े पैसे खर्च कर लो। चोट लग गई तो, डॉक्टर का खर्चा, दवाई का खर्चा, वो सब कौन भरेगा? उससे तो अच्छा है, ढंग के जूते ले लो।”
पता है, पहले ज़माने में, लोग ऐसे जूते थोड़ी पहनते थे। तब तो ऐसे ही, नंगे पाँव या फिर मामूली चप्पल पहन कर खेल लेते थे। लेकिन अब ज़माना बदल गया है। अब तो हर खेल के लिए अलग-अलग सामान आता है। फुटबॉल के लिए फुटबॉल के जूते, बेसबॉल के लिए बेसबॉल के जूते। और भी पता नहीं क्या-क्या।
एक बात और, ये जो फुटबॉल के जूते होते हैं, इन्हें “बूट” भी कहते हैं। ये तो मुझे मेरे पोते ने ही बताया। मुझे क्या पता था, मैं तो बस “जूते” ही कहती थी। और हाँ, ये जो बेसबॉल खेलते हैं, उसमें एक “बल्ला” होता है, जिससे गेंद को मारते हैं। और फिर भागते हैं। भागने को कहते हैं “रन” बनाना। ये सब मुझे मेरे पोते ने ही सिखाया है।
वो मुझसे पूछता रहता है, “दादी, ये कैसे होता है, वो कैसे होता है?” मैं कहती हूँ, “बेटा, मुझे क्या पता, मैं तो बस इतना जानती हूँ कि हर काम के लिए सही चीज़ इस्तेमाल करनी चाहिए। अब तुम हल जोतने के लिए, ट्रैक्टर की जगह, बैलगाड़ी का इस्तेमाल करोगे, तो कैसे चलेगा?”
मैंने उसे कहा, बेटा, अगर तुम्हें फुटबॉल खेलना है, तो फुटबॉल के जूते ही पहनना। और अगर बेसबॉल खेलना है, तो बेसबॉल के जूते पहनना। ये अदला-बदली मत करना। नहीं तो, न इधर के रहोगे, न उधर के। और चोट लगेगी, वो अलग।

वो बोला, “ठीक है दादी, आप सही कह रही हो।” अब देखो, बच्चे को समझ आ गया ना। बस, यही तो मैं समझाना चाहती थी। हर चीज़ का अपना-अपना महत्व होता है। और उसे उसी तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए, जिसके लिए वो बनी है। अब तुम गन्ने के खेत में, गेहूं बोने जाओगे, तो क्या होगा? कुछ नहीं होगा। बस वही बात है।
ये जो खेलने कूदने वाले बच्चे होते है ना, इनको लगता है की सब एक जैसा ही है। इनको लगता है की बस दौड़ना ही तो है, चाहे किसी भी जूते से दौड़ लो, क्या फर्क पड़ता है। इनको समझाना पड़ता है की बेटा हर चीज़ अलग होती है, हर खेल अलग होता है। उसके लिए अलग सामान भी लगता है।
अब ये बेसबॉल वाले जो है, ये टोपी भी पहनते है। वो टोपी किसलिए होती है? वो होती है ताकि धुप से बच सके। अब तुम कहोगे की फुटबॉल वाले टोपी क्यों नहीं पहनते? अरे, तो फुटबॉल में इतना भागना पड़ता है, टोपी गिर जाएगी तो कौन उठाएगा? इसलिए हर खेल के अपने नियम है, अपने तरीके है।
एक और बात, ये जो मैदान होता है ना, जिसपे ये खेलते है, वो भी अलग होता है। फुटबॉल का मैदान बड़ा होता है, बेसबॉल का थोड़ा छोटा होता है। अब तुम बेसबॉल के मैदान में फुटबॉल खेलोगे तो कैसे चलेगा? गेंद तो बाहर ही जाती रहेगी।
बस यही सब बाते है, जो बच्चो को समझनी चाहिए। हर खेल अलग है, उसके नियम अलग है, उसके लिए सामान भी अलग ही चाहिए। अब तुम ये नहीं कह सकते की मैं तो बस एक ही जूता खरीदूंगा और उसी से सब खेलूंगा। ऐसा नहीं होता है।
चलो, बहुत बातें हो गई। अब मैं चलती हूँ। तुम लोग अपना ध्यान रखना। और हाँ, अगर खेलना है, तो ढंग के जूते पहन कर खेलना, ठीक है?
