अरे हाँ, आजकाल के लरिकन का फैशन भी गजब है। हम तो बूढ़ भएँ, का जाने जींस-वींस के बारे में। लेकिन हाँ, देखे हैं, शहर में बहुते लरिकन पहने रहत हैं।
जींस का चोचला
ई जींस-वींस का चोचला भी नया नाहीं है। हम छोट रहलीं, तब सुना करत रहलीं कि जवान लोग पहने लागत ह। तब तो हमका लागत रहा कि ई कोनो परदेसी कपड़ा है। लेकिन अब तो गाँव-गाँव में दिखे लगल है। अब तो लरिकिया भी पहने लगी है, हम का कहें, जमाना बदल रहा है।

का बताईं, हमरे समधिन के बिटिया, उहो जींस पहनेले। हम पूछे कि काहे पहिनत हओ, त कहे लागल कि, “अम्मा ई तो फैशन है”। अब फैशन हो या कुछ और, हम का जाने। हम तो साड़ी में ही ठीक रहलीं।
लेकिन हाँ, ई जींस बहुते मजबूत होला है। खेत-खार में काम करे वाला लोग भी पहने लगल है। कहते हैं कि जल्दी फटता नहीं है। अब ई बात तो सही है। हम भी एक बार अपने बेटवा के लिए ले गईलीं रहलीं, बहुते दिन चला।
जींस के प्रकार
सुने हैं कि जींस भी कई तरह का होला है। कोनो ढीला-ढाला, कोनो एकदम चुस्त। कोनो फटा-पुराना, कोनो एकदम नया। अब हम का जाने कउन नीक है, कउन खराब। हम तो बस इतना जाने हैं कि कपड़ा तन ढके खातिर होला है। अब चाहे जइसे ढको, चाहे साड़ी से ढको, चाहे जींस से।
- ढीला जींस
- चुस्त जींस
- फटा जींस
लेकिन हाँ, एक बात त है, जींस पहने में आराम बहुते होला है। खासकर जब काम-धाम करो तब। साड़ी त लपेटे में ही आधा समय निकल जाता है। लेकिन जींस पहनो और काम पर लग जाओ।
जींस की देखभाल

सुने हैं कि जींस का देखभाल भी बहुते करे के पड़ेला है। धोवे में भी ध्यान रखे के पड़ेला है, सुखावे में भी। अब हम त धोती-साड़ी धोवे जानीं, जींस-वींस का जाने। लेकिन हाँ, सुने हैं कि गरम पानी में नाहीं धोवे के चाहीं, नाहीं तो रंग उतर जाता है।
जींस और फैशन
आजकाल तो जींस फैशन बन गइल है। लड़का-लड़की सब पहने हैं। तरह-तरह का डिजाइन, तरह-तरह का रंग। अब हम का कहें, फैशन त फैशन है। आज ई है, कल ऊ है। हम त अपने जमाने में रहे, उहे ठीक रहे।
जींस की कीमत
सुने हैं कि जींस बहुते महंगा भी होला है। हजार-दू हजार से लेके पांच-दस हजार तक। अब ई त अपने-अपने औकात की बात है। जेतना पैसा, तेतना कपड़ा। हम त अपने बेटवा खातिर पांच सौ वाला ले गईलीं रहलीं, उहो ठीक चला।
जींस और गाँव

अब त गाँव में भी जींस बहुते चलन में आ गइल है। पहले त लोग डरात रहन कि का कहिहें लोग, लेकिन अब सब पहिनत ह। लड़का-लड़की सब। अब गाँव भी शहर जइसन हो रहल है।
हमारी राय
अब हम का कहें, जींस के बारे में। हम त बूढ़ भएँ, का जाने फैशन-वैशन के बारे में। लेकिन हाँ, इतना जाने हैं कि कपड़ा तन ढके खातिर होला है। अब चाहे जइसे ढको, चाहे साड़ी से ढको, चाहे जींस से। और हाँ, कपड़ा मजबूत होना चाहिए, जल्दी फटे नाहीं। बाकी त सब मोह-माया है।
अब ई सब बात हम सुने-सुनाए कहत हईं। हम त खुद कभी जींस नाहीं पहने। लेकिन देखे हैं, लोग पहने हैं, बहुते चाव से। अब चाव हो या मजबूरी, ई त उहे जाने। हम त बस इतना जाने हैं कि पेट भरा रहे, तन ढका रहे, और भगवान का नाम लेते रहो, बस।
लेकिन हाँ, एक बात और, जींस पहनो चाहे साड़ी, संस्कार मत भूलो। संस्कार ही सबसे बड़ा धन है। कपड़ा त बस तन ढके खातिर होला है।
ठीक है, अब हम चलीं। बहुते बात हो गइल। राम-राम।
