अरे, यारों! आज तो ना, इतवार की रेस का टाइम जानने के लिए, मैंने जो माथापच्ची की है, वो बताने लायक है। सुबह से ही दिमाग में यही घूम रहा था कि भाई, रेस कितने बजे शुरू होगी? पहले तो सोचा, खुद ही ढूंढ लेता हूँ, कौन सा बड़ा काम है।
- सबसे पहले, मैंने टीवी चालू किया। चैनलों की लिस्ट में स्पोर्ट चैनल ढूंढने में, चैनलों के बीच झूलता रहा। इतने सारे चैनल, और काम का एक भी नहीं।
- फिर, याद आया कि मोबाइल तो है अपने पास। फटाफट इंटरनेट खोला, सर्च बार में टाइप किया, “आज रेस कितने बजे है?”। अरे, जवाबों की तो झड़ी लग गई, पर सब अलग-अलग टाइम बता रहे थे। कोई दोपहर में कह रहा था, कोई शाम को। दिमाग का दही हो गया!
- इसके बाद, मैंने सोचा कि सोशल मीडिया पर देखता हूँ, शायद कोई ग्रुप या पेज होगा, जहाँ ये जानकारी मिल जाए। फेसबुक, इंस्टाग्राम, सब छान मारा, पर कहीं कुछ पक्का नहीं मिला। लोगों की बातों में तो और उलझ गया।
- अंत में, थक हार कर, मैंने एक दोस्त को फोन लगाया, जो रेस का शौकीन है। उसने झट से बता दिया कि रेस शाम को इतने बजे शुरू होगी। तब जाकर मेरी जान में जान आई!
सच में, इतनी सी जानकारी के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ेगी, सोचा नहीं था। पर चलो, अब पता तो चल गया, अब आराम से बैठकर रेस देखूंगा। आप भी देख रहे हो क्या? यारों, आज तो रेस देखने में मज़ा आएगा। देखना है कि आज कौन जीतेगा।
अनुभव
मैंने इस अनुभव से सीखा कि कभी-कभी छोटी सी जानकारी के लिए भी बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। और हाँ, दोस्तों का महत्व भी समझ आ गया। अगली बार से, सीधा उन्हीं से पूछूंगा, इतनी माथापच्ची नहीं करूंगा।
